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      तुम्हारा......कुछ नहीं !
तुम्हारा......कुछ नहीं !
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                  ये कविता-संग्रह मेरी साहित्यिक यात्रा की एक विनम्र शुरुआत है – एक प्रयास उन पाठकों तक पहुँचने का जो शब्दों में भावनाएँ तलाशते है। इन कविताओं की जड़े मेरे मन की उस आवाज़ में है जिसने मुझे अपनी यादों, अपने दर्द, अपनी खुशियों और अपने एहसासों को कागज़ पर उतारने के लिए प्रेरित किया। 
हर पंक्ति, हर शब्द मेरे भीतर उठती भावनाओं की अनुगूँज ही नहीं बल्कि एक छोटी सी पुकार है उन सभी के लिए जिन्होंने कभी यह सोचकर कलम से दूरी बना ली कि वे शायद लिख नहीं सकते। 
यकीन मानिए कोई भी लिख सकता है ...अगर आप महसूस कर सकते है तो आप लिख भी सकते है। अगर मन में कुछ कहने की चाह हो, तो शब्द अपने आप रास्त बना लेते है। यह किताब उसी यकीन की परछाई है। 
                
SKU:9789370926851
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