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बाज़ार की चाल शब्दों के हाल

बाज़ार की चाल शब्दों के हाल

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एक कवि की नजर से, वीरेन्द्र विक्रम ने निवेश, शेयर बाजार, और अर्थशास्त्र की गहराइयों को उकेरा है। तकनीक और आंकड़ों की दुनिया को कविता के कोमल शब्दों में ढालते हुए, यह पुस्तक वित्तीय ज्ञान और रचनात्मकता का अद्वितीय संगम है। वीरेन्द्र की कविताएँ आपको बाजार के उतार-चढ़ाव में छिपे जीवन के दर्शन को देखने का मौका देंगी। उनकी यात्रा, एक निवेशक और यात्री के रूप में, आपको विचारों की नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी—जहां संख्या और शब्द मिलकर नई संभावनाओं की कहानियाँ कहते हैं। यह किताब न केवल अर्थशास्त्र का एक पाठ है, बल्कि धन, सपनों और संभावनाओं की कविता है। इसे पढ़ते हुए, आप न सिर्फ समझेंगे, बल्कि महसूस करेंगे कि वित्तीय दुनिया भी कला हो सकती है।

SKU:9789370921009

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