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अणु से अनूठी

अणु से अनूठी

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नाकाम इश्क़ के नज्म से परे जिंदगी।* कोई इंसान इश्क में कितना और कितनी बार और कैसे कैसे हार सकता है? उस परिकल्पना की प्रकास्ठा है एक कहानी। जिनका मुझसे सरोकार दशकों का है, वह मुझे हंसता खेलता देख बेहद खुश होते हैं। जिनका मेरे दुःख के समय से पहचान है, वह मुस्कुराते चेहरे पर लाइक बटन दबा कर डी एम करते हैं कि 'सब ठीक?' चकना चूर शीशा भी कभी जुड़ कर समाज का आइना बन सकता है, किसने सोचा था? अनगिनत टुकड़ों में कभी बिखरे चस्मे से भी फिर से रंगीन दुनिया देखी जा सकती है। यह देखने वाले, जब चकित से ज्यादा खुश हों तो समझ जाइए के आप पर ऊपर वाले की नेमत है, के इस स्वार्थ पूर्ण दुनिया में कोई आपको बिना वजह खुश देखना चाहता है। कुछ कमी नही लगती कोई खालीपन नही होता, जब किसी मकसद से जीवन जिया जाए।

SKU:9789370920132

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