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विविधा
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कबीरदास जी ने एक दोहे में कहा है कि यदि मैं सातों समुद्रों के जल को स्याही, समस्त वनों को लेखनी और सारी पृथ्वी को काग़ज़ बना लूँ, तब भी परमात्मा के गुणों को लिखा नहीं जा सकता। भारतीय वांग्मय में ईश्वर को गुणातीत कहा गया है अर्थात् वह अनंत गुणों से युक्त है।
अतः ईश्वर के गुणों के बारे में लिखना मनुष्य के सामर्थ्य के बाहर है। यद्यपि हम अपने भक्ति-भावों को कविताओं के माध्यम से यथासामर्थ्य प्रकट तो कर ही सकते हैं। ऐसा ही एक विनम्र प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है। 'विविधा' में ईश-वंदना, गुरु-महिमा, ऋषि-वंदना आदि विषयों पर आधारित गीत हैं। इनमें से अधिकांशतः गेय पद हैं जिन्हें भजनों की तरह गाया जा सकता है। आशा है पाठकों को यह प्रयास पसंद आएगा।
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