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“करमकल्ला”

“करमकल्ला”

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जीवन के मर्म को निकट से जानने के लिए मानव को अपने आस-पास होने वाली रोज़मर्रा की घटनाओं को आत्मसात करना होगा I“करमकल्ला” अपने अंक में बाहरी कड़े आवरण, जिसे ढोर-गवार के लिए मानव द्वारा तिरस्कृत किया जाता रहा है, वही कोमलता को भी, शिशु की तरह, संजोए हुए है I “करमकल्ला” में कपि द्वारा मानव की संविधान के प्रति उपेक्षा, स्त्री-सशक्तिकरण, ना खत्म होती हुई स्पर्धा, हाथ से निकलते अवसर, संयुक्त परिवार में बिखराव, विवाह की कुंडली का मॉर्डराइज़ेशन, अड़चन मार्ग से फल की प्राप्ति, मंगली कुंडली होने की गलत धारणा व मां-दादी की क्रमशः असीम व्यथा और प्रेम के इर्दगिर्द शब्दों का पद्द संगीत है I अंत में दो कविताएं, हिंदी भाषा को समर्पित है I वे मानव जीवन को स्वयं माँजने के लिए है I

SKU:9789369543113

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